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Disaster Management

श्रीजन एसएचजीः आपदा के अंधेरे में रोशनी बन गए समूह

त्यूड़ी गांव के पंचायत भवन में शुक्रवार चार अगस्त, 2017 की शाम चार बजे आरती स्वयं सहायता समूह की मासिक बैठक बुलाई गई है। बारिश सुबह से ही तेज है, इसलिए महिलाएं थोड़ा देरी से पहुंच रही हैं। करीब सवा चार बजे तक सभी सदस्य पंचायत भवन परिसर में हैं। जैसे ही जो सदस्य आती रहीं हाजिरी रजिस्ट्री में हस्ताक्षर करती रहीं। एक-एक करके सभी 13 सदस्य पंचायत भवन में पहुंच गईं। इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना…… प्रार्थना शुरू हो गई। सभी अपनी अपनी जगहों पर खड़े हैं,  सब कुछ नियम और अनुशासन के दायरे में है। समूह की अध्यक्ष सरिता देवी बताती हैं कि हमारी रोजाना की गतिविधियों को इस प्रार्थना से ताकत मिलती है। आपदा में सब कुछ खो देने के बाद फिर से नई राह पर चलने का साहस हमें एकजुट होकर ही मिला। समूह ने एक किरण की तरह काम किया है, जो धीरे-धीरे सभी को तरक्की का रास्ता दिखा रहा है। 

बैठक की कार्यवाही शुरू होते ही अध्यक्ष सरिता देवी ने बताया कि समूह के बैंक खाते में 56 हजार 222 रुपये जमा हैं। हर बार की तरह इस बैठक में भी सदस्यों ने बचत के सौ-सौ रुपये जमा कराए, कुल मिलाकर 1300 रुपये इकट्ठे हो गए। इस राशि को बैंक में जमा करने की जिम्मेदारी समूह की एक सदस्य को दी गई। पिछली बार किसी और सदस्य ने बैंक में पैसे जमा कराए थे। यहां बैंक जाने का जिम्मा रोस्टर पर चलता है। इसका लाभ यह हुआ कि सभी सदस्यों को अपने समूह की कुल बचत की जानकारी रहती है और वो बैंक से लेन-देन की प्रक्रिया को भी सीख गईं। सदस्य बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ संवाद बनाए रखते हैं, ताकि बैंक की योजनाओं की जानकारी मिलती रहे।इसी तरह हर गांव में एक या इससे अधिक स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं। सभी समूह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से संचालित होते हैं। हर सदस्य के बराबर के अधिकार और जिम्मेदारियां हैं। 

अध्यक्ष सरिता देवी  बताती हैं कि उनके समूह ने चार महिलाओं को 10 से 20 हजार रुपये तक का लोन दिया। पूनम देवी को घर की मरम्मत के लिए 20 हजार रुपये लोन दिया। सुलोचना देवी को बच्चों की फीस जमा करने के लिए 15 हजार रुपये की जरूरत थी। समूह ने उनको यह राशि लोन पर दी। पुष्पा देवी को बेटी की सगाई के लिए 10 हजार रुपये दिए। इसी तरह हेमा को रोजगार चलाने को खच्चर खरीदने के लिए दस हजार दिए गए। सदस्यों को अब किसी से ज्यादा ब्याज पर उधार लेने की जरूरत नहीं है। सदस्य को किसी निर्धारित अवधि में लोन चुका पड़ता है और इसके लिए किसी की गारंटी भी दिलानी होती है। कभी कभार ऐसा भी होता है कि समूह बैठक में निर्णय लेकर ब्याज की रकम को कम या फिर माफ भी कर सकते हैं। हर माह शुल्क के साथ लोन व ब्याज की रकम जमा कराई जाती है। समूह के खाते में जमा रकम सदस्यों की है, जो उनके कल्याण में इस्तेमाल की जा रही है। समूह के सभी फाइलों पर साथ के साथ लिखापढ़ी होती है, कोई भी काम दूसरे दिन के लिए नहीं टाला जाता। वहीं पाट्यौ गांव के स्वयं सहायता समूह ने दो महिलाओं को बेटी की शादी और गाय खरीदने के लिए लोन दिया था। इनमें से एक ने ब्याज सहित लोन चुका दिया है। ये भी पढ़ियें- श्रीजन परियोजना : आपदा के अंधेरे से समृद्धि के उजाले की ओर…

माह में एक बार होने वाली बैठक में महिलाएं अपने गांव की समस्याओं पर भी चर्चा करती है। इस पर सामूहिक रूप से काम किया जाता है। गिंवाला गांव की महिलाएं गांव की सड़क को ठीक कराने के लिए सीधे रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी के पास पहुंच गईं। समूह में शामिल होने से पहले ये महिलाएं गांव से बाहर जाने में असहज महसूस करती थीं। ये समूह महिला सशक्तीकरण का जीता जागता उदाहरण हैं। गांव में हो रहे निर्माण कार्यों की निगरानी भी करती हैं। 

 श्रीजन परियोजना के प्रतिनिधि किसी भी ट्रेनिंग, जागरूकता कार्यक्रम व किसी गतिविधि के लिए समूहों के साथ उनके गांवों में बैठकें करते हैं। हाल ही में नैपियर ग्रास बांटने, बीज बैंक बनाने, विलेज टूरिज्म और हैंडलूम ट्रेनिंग दिलाने के लिए समूहों के साथ चर्चा की गई थी। समूहों के सदस्यों के क्षमता विकास और आय के स्रोत बनाने के लिए उनको जूस, स्कवैश, अचार बनाने, हैंडलूम की वस्तुए बनाने, सिलाई, बुनाई, डिजाइनिंग की ट्रेनिंग दी गई। अध्यक्ष सरिता देवी बताती हैं कि महिलाएं अपने घरों पर उत्पाद तैयार करती हैं और फिर डिस्प्ले के लिए सीआरटीसी पर पहुंचा देती हैं। उत्पाद की बिक्री की राशि महिलाओं को मिल जाती है।           ये भी पढ़ियें-  श्रीजन काउंसलिंगः जेहन में दबा दर्द बाहर निकला

आरती स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष सरिता देवी कहती हैं कि समूहों का उद्देश्य विशेष रूप से आपदा प्रभावित परिवारों, महिलाओं और वंचित वर्गों को विकास की राह पर ले जाना है। समूहों में उन महिलाओं को प्रमुखता से शामिल किया गया है, जिनके परिवारों ने आपदा में सबसे ज्यादा नुकसान झेला था। ये सामूहिक भागीदारी से अपने सदस्यों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। ये बैंकों की तरह बचत और ऋण के माध्यम से अपने सदस्यों की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करते हैं। समूह आय के स्रोत विकसित करने, साक्षरता, बच्चों की देखभाल, पौष्टिक खानपान के लिए जागरूकता की गतिविधियां चला रहे हैं। समूह महिलाओं की आत्मनिर्भरता का प्रभावी माध्यम हैं। ये महिलाओं को जीवन के हर आयाम पर सशक्त करते हुए उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं। स्वयं सहायता समूह एक ऐसे फोरम की तरह काम करता है, जहां इनके सदस्य बैठकों में सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं।ये भी पढ़ियें-   रुद्रप्रयाग में श्रीजन परियोजना का पहला कदम

रुद्रप्रयाग के बुडोली गांव में श्रीजन परियोजना के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते स्वयं सहायता समूह के सदस्य। Photo@Shrijanpariyojana

गिंवाला की दीपा देवी ने बताया कि हमारे गांव में कई बार लोग आए और स्वयं सहायता समूह बनाने की सलाह दी। जब हमने समूह बनाया तो ये लोग हमें छोड़कर चले गए। गेल इंडिया के सहयोग से बनाए समूह से हमें काफी फायदा पहुंच रहा है। अब हम हर माह कुछ बचत कर पा रहे हैं और समूह की गतिविधियों में शामिल होकर काफी अनुभव मिल रहा है। हम लोगों के बीच अपनी बात रख पा रहे हैं, जबकि पहले ऐसा नहीं था। पहले गांव से बाहर जाने में काफी दिक्कतें होती थीं। हम घर और गांव से बाहर निकले ही नहीं थे, इसलिए हम बैंक के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन अब बैंक जाकर वहां अपने सभी कामकाज खुद निपटाते हैं। हम बैंक के कामकाज को समझ गए हैं। पहले गरीब परिवारों को बैंकों से लोन नहीं मिल पा रहा था। लेकिन अब हमारे समूह का पर्याप्त पैसा बैंक मे जमा है और हम अपने सदस्यों को बहुत कम ब्याज पर लोन दे सकते हैं। शादी विवाह हो या बच्चों की फीस के लिए हमें किसी से पैसे मांगने की जरूरत नहीं है। हमें गर्व है कि हमारे समूह के पास जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसा है। ये भी पढ़ियें-  श्रीजन परियोजनाः चुनौतियां थीं पर हौसला नहीं खोया

स्वयं सहायता समूहों का वित्तीय प्रबंधन  

  • 37 स्वयं सहायता समूहों और सात फारमर्स इन्टरेस्ट ग्रुपों को वित्तीय साक्षरता और प्रबंधन की ट्रेनिंग दी गई। समूहों की हर माह बैठकें होती हैं। सभी रिकार्ड को सही तरीके से मेंटेन किया जाता है।
  • 5.97 लाख रुपये तक की सेविंग हो गई साढ़े तीन साल में स्वयं सहायता समूहों की।
  • 20 हजार रुपये तक लोन दे सकते हैं स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को।
  • 17.75 लाख रुपये बैंकों से लोन मिल हो सकता हैं समूहों को, स्थानीय बैंकों में समूहों के खाते खोले गए हैं।

हर सदस्य यह अच्छी तरह समझ गया है कि जीवन में बचत और आर्थिक प्रगति के लिए समूह खास भूमिका निभा सकते हैं। जरूरत पड़ने पर सदस्य अपने समूहों से लोन लेते हैं, जबकि पहले स्थानीय सूदखोरों के चंगुल में फंसकर नुकसान उठा रहे थे। समूहों की बैठकों में सदस्य अपनी समस्याओं को आसानी से साझा करते हैं। उनको लोन के रूप में आर्थिक और भावनात्मक सहयोग भी मिलता है। एक स्वयं सहायता समूह ने तो अपने गांव में शराबखोरी के खिलाफ अभियान चलाकर सामाजिक जागरूकता का संदेश दिया।  -दिल्ली विश्वविद्यालय की इंडिपेंडेंट एसेसमेंट रिपोर्ट से 

  गेल इंडिया ने हमारे स्वयं सहायता समूह को काफी सहयोग किया। आपदा में हमारी जमीन बह गई। गांव की पानी और बिजली की लाइनों को भारी नुकसान पहुंचा। सभी संसाधन खत्म हो गए थे। श्रीजन परियोजना के लोगों ने हमारी मदद की और और हमें बताया कि आपदा में अपना बचाव कैसे किया जाए। हमें आपदा से बचने के तरीकों और सावधानियां बरतने की ट्रेनिंग दी गई।-संतोषी देवी, गिंवाला