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Disaster Management

श्रीजन नैपियर ग्रासः अब जंगल जाना मजबूरी नहीं  

अब हमारे सामने रोजाना जंगल जाने की कोई मजबूरी नहीं है। पहले हर घर से महिलाएं पशुओं के लिए चारा पत्ती और ईंधन लेने जंगल जा रही थी। रोजाना, चाहे तेज बारिश हो या फिर खूब ठंड का मौसम। हमेशा यही सोचते थे कि अगर जंगल नहीं जाएंगे तो पशुओं को क्या खिलाएंगे। घास और लकड़ी के लिए किसी पहाड़ी या पेड़ पर चढ़ गए तो चोट भी लग जाती थी। गुलदार और भालू का खतरा अलग से बना रहता था। गेल इंडिया ने घरों के पास ही खेतों की मेढ़ों पर नैपियर ग्रास लगवा दी। अब घर के पास ही काफी घास हो जाती है। पशु भी इसको आसानी से खा लेते हैं। अब अगर कोई अपने शौक के लिए जंगल जाना चाहे तो जाए, मजबूरी नहीं है।

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संसारी गांव की निर्मला देवी मानवभारती संस्था का जिक्र करते हुए कहती हैं कि हमें अब चिंता नहीं रहती कि सुबह होते ही जंगल की दौड़ लगानी पड़ेगी। पहले हम घास के लिए रोजाना करीब दो किलोमीटर आना-जाना करते थे। दोपहर करीब एक बजे घर पहुंचते और फिर घर के कामकाज और पशुओं की देखरेख में जुट जाते। खेतीबाड़ी भी संभालनी पड़ती है। पूरा दिन यहां तक कि देर शाम तक यही कामकाज नहीं निपट पाता था।

आपदा प्रभावित गांवों में पशुओं के चारे के लिए महिलाओं को पहाड़ के ऊंचे नीचे रास्तों पर तीन से चार किलोमीटर बोझ लेकर चलना पड़ रहा था। महिलाओं के इस जज्बे को सलाम है। गेल इंडिया ने महिलाओं की इस समस्या को दूर करने का निर्णय लिया। त्यूड़ी, संसारी, बणसूं, खुमेरा, भीरीं, डमार, बुटोल गांव, गिंवाला, बुडोली, पाट्यौ के स्वयं सहायता समूहों और ग्रामीणों को नैपियर घास बांटी गई। श्रीजन परियोजना के कार्यकर्ताओं ने खेतों की मेढ़ों पर नैपियर ग्रास लगाने में ग्रामीणों की मदद की।

आपदा प्रभावित गांवों में खेतों की सुरक्षा और भूस्खलन रोकने के लिए हर साल नैपियर घास बांटी जा रही है, जिसका काफी फायदा मिला। नैपियर को खेतों की मेढ़ों पर लगाया जाता है, ताकि बारिश में खेतों की मिट्टी न बहे। इसकी जड़ें मिट्टी को जकड़ कर बहने से रोकती हैं। पहाड़ के सीढ़ीदार खेतों की सुरक्षा में इसका बड़ा योगदान है। घर के पास खेतों में मौजूद नैपियर को पशुओं के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। श्रीजन परियोजना ने ग्रामीणों को अधिक से अधिक नैपियर घास लगाने के लिए प्रेरित किया।

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जंगलों में मानवीय दखल कम होने से पेड़ों की सुरक्षा भी हो रही है। गेल इंडिया के सहयोग से ग्रामीणों ने जंगलों में पौधे लगाए हैं। वहीं ईंधन के लिए धुआं रहित चूल्हे भी गेल इंडिया ने दिए हैं और आसपास फैली चीड़ की पत्तियों (पिरूल) के कोयले बनाना भी ग्रामीणों ने सीख लिया है। वहीं लगभग सभी घरों में घरेलू गैस भी पहुंच गई है।

महिलाओं के सिर से बोझ हटाया और समय बचायाः जंगल से पशुओं का चारा लाने में महिलाओं का काफी समय खराब हो रहा था। श्रीजन परियोजना वाले दस गांवों की जंगल से दूरी और वहां से चारा लाने में लगने वाले समय का आकलन किया गया। चौंकाने वाला आंकड़े मिले।

 एक माह में महिलाओं की मेहनत (पहले)

  • 156 किमी. पैदल चलना पड़ रहा था पहाड़ के ढलान और चढ़ाई वाले रास्तों पर
  • 122 घंटे खराब हो रहे थे हर महिला के केवल पशुओं का चारा जुटाने में
  • 30 किलो घास का बोझ पीठ पर लादकर दो घंटे लगातार चल रही थी महिलाएं

एक माह में महिलाओं की मेहनत (अब)

  • 40 किमी. पैदल चलना पड़ रहा है केवल घर के पास खेत से घास लाने में। पहाड़ के ढलान और चढ़ाई वाले रास्तों की दिक्कत नहीं।
  • 40 घंटे लग रहे पशुओं का चारा जुटाने में
  • 144 महिलाएं राहत में हैं गेल इंडिया के सहयोग से मिली नैपियर ग्रास से
  • 200 से ज्यादा परिवार उठा रहे हैं नैपियर ग्रास का फायदा

अब खतरे में नहीं महिलाएः त्यूड़ी, बणसू और खुमेरा गांव की महिलाओं को जंगल से घास लाने के लिए छह से सात किमी. रोजाना चलना पड़ रहा था। पहाड़ के वनों में गुलदार, भालुओं का खतरा अलग से बना रहता है। घास पत्तियां काटने के प्रयास में कई बार महिलाओं के पहाड़ी से गिरकर गंभीर रूप से घायल होने के मामले में सामने आते रहे हैं। वहीं बारिश या सर्दियों में जंगलों से लौटने के बाद स्वास्थ्य खराब हो जाता था। महिलाओं को बुखार की शिकायत अक्सर रहती थी।

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 पहले महिलाएं सामाजिक और पारिवारिक कार्यों के लिए बड़ी मुश्किल से समय निकाल पा रही थीं, वहीं अत्यधिक श्रम की वजह से उनका स्वास्थ्य भी खराब रहता था। हमेशा पशुपालन और खेती के कार्यों को लेकर तनाव था, लेकिन अब उनके पास समय है। अपने घर परिवार के कार्यों को समय दे सकती हैं। सामाजिक कार्यों में शामिल हो सकती हैं तथा कौशल विकास की ट्रेनिंग लेकर आत्मनिर्भर होकर आय अर्जित कर सकती हैं। यह आपदा प्रभावित महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। – रंजू देवी, अध्यक्ष नरसिंह स्वयं सहायता समूह त्यूड़ी