A CSR Initiative of GAIL (India) Limited
Disaster Management

श्रीजन काउंसलिंगः जेहन में दबा दर्द बाहर निकला

मैं भगवान को नहीं मानती। अगर वो होता तो मेरा परिवार नहीं उजड़ता। मैंने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था, तो मेरे परिवार को क्यों उजाड़ दिया। मेरे सामने से हट जाओ, चले जाओ यहां से। मैं कहां जाऊं, अब मेरा कोई नहीं बचा। उसका करुण क्रंदन सुनकर पूरा भीरी असहज हो जाता था। थोड़ी ही देर में वह चुप्पी साध लेती और फिर कई घंटे बीत जाते, किसी की बात का कोई जवाब नहीं देती। हर समय एकटक आंखों से देखने वाली भीरीं गांव की करीब 20 साल की नलिनी (परिवर्तित नाम) को देखकर हर किसी की आंखों में आंसू आ जाते थे। सात-आठ महीने बाद भी नलिनी की हालत में सुधार नहीं हुआ। शायद अपने डेढ़ साल के बच्चे को देखकर ही उसका गम कुछ कम हो जाए, सोचकर सास बच्चा उसकी ओर ले जाती, लेकिन वह अपने बच्चे को पास तक नहीं आने देती।

केदारनाथ धाम में खच्चर चलाने वाले उसके पति और दो जेठ आपदा में लापता हो गए थे। आखिर में यह मान लिया गया था कि वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। नलिनी के पिता और भाई की भी आपदा में मौत हो गई थी। नलिनी के सास, ससुर व दो और बहुओं ने धीरे-धीरे अपने इस दुख के साथ जीना सीख लिया था, क्योंकि उनको फिर से नई शुरुआत करनी थी। उसके डेढ़ साल के बच्चे की जिम्मेदारी सास पर थी।भीरी गांव में सात और नजदीकी डमार गांव में तीन मौतें हुई थीं। 

श्रीजन की टीम नलिनी के पास जाती और फिर लौट आती। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि नलिनी से बात कर सके, क्योंकि उसके लिए जीने का मकसद खत्म हो गया था। उसने आगे बढ़ने और नई शुरुआत की उम्मीद को कहीं पीछे छोड़ दिया था। श्रीजन परियोजना ने अगस्त्यमुनि में सीनियर साइकोलॉजिस्टों से आपदा प्रभावितों की काउंसलिंग कराई। लगभग सभी लोग पहुंच गए, लेकिन नलिनी नहीं आई। साइकोलॉजिस्ट डॉ. रीतू शर्मा ने उसके घर जाकर काउंसलिंग की। उन्होंने उसके जेहन से उस दर्द को बाहर निकालने में मदद की, जिसको वो दबाए बैठी थी। कई दौर की काउंसलिंग में नलिनी और डॉ. रीतू शर्मा के बीच संवाद बन पड़ा।  वो निराशा से आशा की ओर बढ़ने लगी और आज  वह स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं। श्रीजन ने उनको आर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग दी है। पशुपालन उनकी आजीविका का स्रोत बना है। वो अब अपने बच्चे और परिवार की देखभाल कर रही हैं।  गेल इंडिया की श्रीजन परियोजना रुद्रप्रयाग के जिन गांवों में काम कर रही थी, वहां ऐसी कई कहानियां मिल जाएंगी, जिसे सुनकर हर कोई संवेदनशील व्यक्ति की आंखें नम हो जाएंगी। यहां सबसे पहली चुनौती उन लोगों को सदमे से बाहर निकालना था, जो आपदा में अपने लोगों को खो चुके थे। वो अवसाद में चले गए और उन्होंने मान लिया था कि अब जीने का कोई मकसद नहीं रह गया। उनका हौसला जवाब देने लगा और फिर से नई जिंदगी की आस लगभग टूट चुकी थी। ये भी पढ़ियें-  श्रीजन परियोजनाः चुनौतियां थीं पर हौसला नहीं खोया

श्रीजन परियोजना ने आपदा से प्रभावित महिलाओं की काउंसलिंग कराई। दिसंबर, 2016 में दिल्ली से आईं मनोवैज्ञानिक स्वाति शर्मा ने खुमेरा और भीरी गांव में महिलाओं की काउंसलिंग की। आपदा के बाद से श्रीजन टीम समय-समय पर काउसलिंग कराती रही है। Photo@Shrijanpariyojana

यह स्थिति भी किसी आपदा से कम नहीं थी। श्रीजन परियोजना आपदा प्रभावितों को अवसाद से बाहर लाकर एक बार फिर पहाड़ में जीवन को गति देना चाहती थी। वरिष्ठ मनोविज्ञानियों ने आपदा प्रभावित 97 लोगों की कई लेवल पर काउंसलिंग की गई, जिनमें 67 महिलाएं शामिल हैं । शुरुआत उन नौ महिलाओं से की गई, जिनका मौत से सामना हुआ था। इनमें आठ के पति आपदा में मारे गए थे, वहीं एक महिला के दो बेटों पर जलप्रलय मौत बनकर टूटी थी। मनोमस्तिष्क पर छप गई इस पीड़ा को भुलाकर नई शुरुआत करना बहुत मुश्किल था। श्रीजन ने प्रोफेशनल साइकोलॉजिस्ट की सेवाएं लीं। प्रभावितों को वर्तमान हालात को समझने और कुछ करने के लिए मानसिक रूप से तैयार होने  में मदद मिली। उनको भावनात्मक रूप से सहयोग दिया गया, ताकि वो आजीविका के लिए जरूरी संसाधनों को आसानी से समझकर कुछ काम कर सकें। मनोवैज्ञानिकों ने नजदीकी गांवों में सामूहिक रूप से भी काउंसलिंग की और उन मुद्दों को जाना, जिन पर दीर्घगामी दृष्टिकोण से काम किया जाना था। इस दौरान व्यक्तिगत काउंसलिंग में कुछ ऐसे लोगों को चिह्नित किया गया, जिनको इलाज के लिए अस्पताल की जरूरत थी। श्रीजन की सक्रिय टीम ने रेगुलर मीटिंग के जरिए कम्युनिटी काउंसलिंग और सकारात्मक चर्चा पर काम किया और इसके अच्छे परिणाम सामने आए। ये भी पढ़ियें-     श्रीजन परियोजना : आपदा के अंधेरे से समृद्धि के उजाले की ओर…                                                                                         

 2013 की आपदा में पति की मौत से आहत सुषमा ( नाम परिवर्तित) सदमे में चली गईं। सुषमा की दिमागी हालत गंभीर हो गई। वह पास्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रैस डिसआर्डर (पीटीएसडी) से जूझ रही थीं। उन्होंने लोगों से बात करना भी बंद कर दिया और धीरे-धीरे परिवार और समाज से अलग हो रही थीं। उनकी इस स्थिति पर उनका परिवार और समाज के लोग चिंतित हो गए। सुषमा ही नहीं उनकी तरह और भी महिलाएं आपदा से दंश को भुला नहीं पा रहे थे और समाज व परिवार से अलग-थलग से हो गए थे। श्रीजन परियोजना की ओर से तैनात मनोवैज्ञानिकों ने सुषमा और इन लोगों को सदमे से बाहर लाने में मदद की। कई बार की काउंसलिंग से आपदा प्रभावितों को राहत मिलने लगी। कुछ केसों में श्रीजन ने मनोचिकित्सकों की सेवाएं भी लीं। नियमित तौर पर काउंसलिंग का असर यह हुआ कि सुषमा और उनकी तरह अन्य लोग सामान्य जीवन में वापस लौट आए। अब इन लोगों को आजीविका के संसाधनों और कौशल विकास की जरूरत थी। श्रीजन ने इनको स्किल ट्रेनिंग दिलाकर आय के साझ विकसित किए। सुषमा को परिवार की आय के लिए गाय दी गई।– दिल्ली यूनिर्वसिटी की इंडीपेंडेंट एसेसमेंट रिपोर्ट का एक अंश

पढ़ाई और करिअर पर भी चर्चा- अगस्त्यमुनि में साइकोलॉजिस्ट डॉ. रीतू शर्मा ने आपदा प्रभावित इलाकों की महिलाओं को क्लास चार से 11 तक के बच्चों की काउंसलिंग की। हर बच्चे के साथ उनके सामान्य क्रियाकलापों और सीखने, पढ़ने, लिखने  पर चर्चा की गई। यह सेशन उनके करिअर भी फोकस रहा। उनसे उनकी जरूरतों पर भी बात की गई। इसी तरह का एक सेशन कंप्यूटर ट्रेनिंग लेने वालीं बालिकाओं के साथ भी किया गया। उनसे करिअर प्लान, अवसरों और तैयारियों पर भी चर्चा की गई। ग्रुप सेशन के बाद व्यक्तिगत रूप से काउंसलिंग की गई। 

काउंसलिंग में सामने आई ये बातें– क्लास 11 की एक छात्रा ने काउंसलिंग में बताया कि उसमें एकाग्रता की कमी है। पढ़ाई के दौरान बार-बार ध्यान भटकता है। पढ़ाई के बाद विषय को याद नहीं रख पाती। सीनियर्स, टीचर्स और अन्य से बात करने में हिचक होती है। लिखने की स्पीड भी कम है और एग्जाम में कई सवाल छूट जाते हैं। क्लास 9 से पहले उसके साथ ऐसी कोई समस्या नहीं थी। यह समस्या कई छात्राओं के साथ थी। हालांकि इनका व्यवहार सामान्य था और साइकोलॉजिस्ट के हर सवाल का प्रापर जवाब दे रही थीं।    ये भी पढ़ियें- रुद्रप्रयाग में श्रीजन परियोजना का पहला कदम

22 साल की एक छात्रा पढ़ी हुई बातों को भूल रही थी। अंजान लोगों और सीनियर्स से बात करने हिचक होती थी।  नींद सामान्य थी, लेकिन हर समय सुस्ती रहती थी। तीन साल पहले टायफाइड से पीड़ित हुई थीं। उस समय पैर में घुटने से नीचे ज्यादा दर्द नहीं थी, लेकिन डेढ़ साल से दर्द ज्यादा हो रहा है। लैब में जांच कराई गई, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। 

दस माह पहले टीईटी में असफल होने के बाद से 33 साल की एक महिला एकाग्रता में कमी, पढ़ाई में मन नहीं लगने, मॉटिवेट नहीं होने जैसे दिक्कतों से जूझ रही थी। जबकि उन्होंने शादी के बाद बीएड व पॉलिटिकल साइंस में मास्टर डिग्री हासिल की थी। जुलाई 2013 में कंप्यूटर कोर्स में एडमिशन लिया था और सितंबर से क्लासेज शुरू की थीं।