
श्रीजन आवासःअब भूकंप से भी खतरा नहीं
बारिश होते ही हम चिंता में पड़ जाते थे। पहाड़ है तो बारिश तो होगी ही और वो भी बहुत होगी। 2013 की आपदा में हमारा एक कमरे का मकान टूट गया था। कई जगह दरार पड़े कमरे में बारिश के समय पानी टपकता था। बारिश वाली रातें जागकर गुजारी हैं हमने। मेरा बेटा केदारनाथ में छोटी सी दुकान चलाता था, आपदा में उसका रोजगार छीन गया। हमारे पास इतना पैसा भी नहीं था कि अपने टूटे मकान की मरम्मत ही करा पाते। एक तरह से हम अपने ही घर में किसी बेघर की तरह रह रहे थे। बड़ी मुश्किल में दिन गुजार रहे थे हम पांच लोग।
2014 की बात है, तारीख तो मुझे याद नहीं है। हमने श्रीजन वालों से कहा था कि हमें एक मकान की जरूरत है। हमें उनका सहयोग चाहिए। एक दिन सभी गांववालों की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में हमारी ओर से मकान का प्रस्ताव रखा गया था। बैठक में तय हुआ कि मानवभारती हमें एक मकान बनाकर देगा। मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं उस दिन कितना खुश हुई। मेरी दुआएं गेल इंडिया वालों को हमेशा खुश रखेंगी, क्योंकि मेरी मुंह मांगी मन्नत पूरी हो गई थी। सच मानो, मेरी आंखों में आंसू आ गए थे। ये भी पढ़ियें- श्रीजन परियोजना : आपदा के अंधेरे से समृद्धि के उजाले की ओर…
खुमेरा गांव की 65 साल नर्मदा देवी गेल इंडिया और श्रीजन को दुआएं देते नहीं थकतीं। कहती हैं कि दो साल पहले हमें मकान बनाकर दे दिया था, जिसमें एक कमरा, एक रसोई, बाथरूम और बरामदा है। अब मेरा बेटा, बहू और दो पोते काफी खुश हैं। हमको बारिश से कोई खतरा नहीं है। 2016 में आए भूकंप से मेरे मकान को कोई खतरा नहीं हुआ। यह आपदारोधी मकान है। ये भी पढ़ियें- श्रीजन काउंसलिंगः जेहन में दबा दर्द बाहर निकला
बहुत खुश है मेरा परिवारः भटवाड़ी सुनार गांव की अंजू देवी और उनका परिवार काफी खुश हैं। उनको श्रीजन ने बांस और सीमेंट से बना आपदारोधी कमरा, किचन और टॉयलेट बनाकर दिए हैं। चार बच्चों वाले छह सदस्यों के परिवार के पास पहले एक ही कमरा था, जिसमें रसोई भी चलती थी और बच्चों की पढ़ाई भी होती थी। अंजू कहती हैं कि बड़ी मुश्किलों में दिन गुजार रहे थे हम लोग। अब हमारे पास दो कमरे हो गए। पहले हमारे पास टॉयलेट नहीं था। हमें कोई दिक्कत नहीं है, सब कुछ अच्छे से चल रहा है।

गेल इंडिया की वित्तीय मदद से मानवभारती संस्था ने गिंवाला गांव में दयाल सिंह को श्रीजन आवास उपलब्ध कराया। Photo@Shrijanpariyojana
अब हमें कोई खतरा नहींः वहीं गिंवाला के दयाल सिंह बताते हैं कि 2013 की आपदा में हमारा मकान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। दीवारों में दरारें आ गई थीं और जगह-जगह से पानी टपक रहा था। घर में दिव्यांग बेटी सहित तीन लोग किसी तरह गुजर बसर कर रहे थे। हर समय खतरा बना रहता था। 6 फरवरी 2017 को आए भूकंप से तो हम लोग बहुत घबरा गए थे। मजबूरी थी, जो पुराने मकान में रहना पड़ रहा था। हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि पुराने मकान की मरम्मत करा सकें। पता चला कि मानवभारती संस्था हमको नया मकान बनाकर देगी। हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हम नये मकान में प्रवेश कर गए हैं और इसमें किसी भूकंप का भी कोई खतरा नहीं रहेगा। धन्यवाद गेल इंडिया और मानवभारती, जो आपने हमें सहयोग दिया। अब हमारा पुराना मकान पूरी तरह ध्वस्त भी हो जाए तो कोई चिंता नहीं। हम सुरक्षित हैं। ये भी पढ़ियें- रुद्रप्रयाग में श्रीजन परियोजना का पहला कदम
श्रीजन परियोजना के प्रतिनिधियों ने गांव-गांव जाकर आपदा से हुए नुकसान और उन लोगों के बारे में जानकारी ली, जिनको मकान की बेहद जरूरत थी। गांवों की खुली बैठक में ऐसे 12 परिवारों का चयन किया गया। परियोजना ने अगस्त्यमुनि ब्लाक के ग्राम भीरी की गेंदी देवी, गिंवाला के सुनदेई देवी व दयाल, डमार के शकुंतला देवी व महिपाल सिंह, ऊखीमठ ब्लाक के ग्राम खुमेरा की प्रभा देवी व नर्मदा देवी, त्यूड़ी की पूनम देवी व जशोमति देवी, ग्राम संसारी के प्रह्लाद सिंह, जखोली के ग्राम पाट्यो की रश्मि देवी को आपदारोधी आवास बनाकर दिए। ये भी पढ़ियें- श्रीजन परियोजनाः चुनौतियां थीं पर हौसला नहीं खोया
आपदा से सुरक्षा की व्यापक पहल
आपदा से नुकसान को कम करने के लिए व्यापक प्लानिंग और युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत थी। श्रीजन ने इस चुनौती से निपटने के लिए राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग से संपर्क किया । अनुभवी एजेंसियों, संगठनों और वाडिया इंस्टीट्यूट व हिमालयन जियोलॉजी के विशेषज्ञों से भी बात की गई, ताकि पर्वतीय इलाकों में डिजास्टर प्रूफ तकनीक से भवन बनाकर खतरों व नुकसान को कम किया जा सके। श्रीजन ने अगस्त्यमुनि में आपदा प्रभावित इलाकों के 15 राजमिस्रियों के लिए तीन दिन के डिजास्टर प्रूफ कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए, ताकि वो अपने क्षेत्र में भवन निर्माण में इस तकनीक को प्रमोट कर सकें। अब तक 119 लोग इसका लाभ उठा चुके हैं।
बृजलाल राजमिस्त्री हैं, जिन्हें श्रीजन ने आपदारोधी निर्माण की ट्रेनिंग दी है। बताते हैं कि कई साल से भवन बना रहा हूं, लेकिन यह मैं ट्रेनिंग में ही जान सका कि भवनों में दरारों को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। उन्होंने हमें कॉलम खड़े करने, पत्थरों को लगाने के साथ ही कई तकनीक बताईं, जो हम पहले से नहीं जानते थे। अब मेरे बनाए भवनों में दरार नहीं पड़ती।
राजमिस्त्रियों को पर्वतीय क्षेत्रों के मानकों को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया। निर्माण के मानकों पर उनकी जानकारियों को परखा गया। उनके अनुभवों और समस्याओं को भी एक्सपर्ट के साथ साझा कराया गया।इस ट्रेनिंग में स्थानीय लोगों की भी प्रमुखता से भागीदारी कराई गई, ताकि वो आपदा से निपटने के लिए भवन निर्माण की तकनीकी को लेकर जागरूक हों और अन्य लोगों को भी सजग रहने को प्रेरित कर सकें। इसका असर भी हुआ है, लोग निर्माण में भूकंपरोधी तकनीकी पर ध्यान दे रहे हैं। वो जान गए कि स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल कैसे किया जाए, ताकि वो भूकंपरोधी होने के साथ ईको फ्रैंडली भवन बना सकें।लोग राज मिस्त्रियों , फर्नीचर वालों और अन्य कारीगरों की तकनीकी पर ध्यान दे रहे हैं। श्रीजन एसएचजीः आपदा के अंधेरे में रोशनी बन गए ये समूह
वहीं ट्रेनिंग लेने वाले राजमिस्त्रियों ने प्रभावित इलाकों में कई भवनों का निर्माण किया, जिनमें आपदा से बचाव की तकनीकी को प्रमुखता दी गई है। अब आपदा वाले क्षेत्रों में अधिकतर लोगों के पास सुरक्षित घर हैं, जहां वो बिना किसी डर के रह सकते हैं। क्योंकि उनके घर भूकंपरोधी तकनीकी से बने हैं। टेक्निकल कंसल्टेंट रामकृष्ण मुखर्जी का कहना है कि ट्रेनिंग पूरी तरह इस बात पर आधारित रही कि स्थानीय संसाधनों पत्थरों और लकड़ियों से कैसे आपदारोधी भवन बनाए जा सकते हैं।
भीरी गांव के राज मिस्री श्यामलाल बताते हैं कि 2013 की आपदा में केदारघाटी में बड़ी संख्या में मकान ध्वस्त हो गए। मैंने भवनों को आपदा से बचाने की तकनीकी का प्रशिक्षण लिया। श्रीजन परियोजना ने यह प्रशिक्षण दिलाया था। मैंने इस तकनीकी से अपने गांव में 4-5 भवन बनाए। 6 फरवरी,2017 को गांव में आए भूकंप में कई मकानों में दरारें आ गईं,लेकिन मैंने जिन मकानों को भूकंपरोधी तकनीकी से बनाया था, उन पर खरोंच तक नहीं आई।
आपदा से बचाव के लिए निर्माण तकनीकी की ट्रेनिंग
- 12 घरों का निर्माण आपदारोधी तकनीकी से किया गया
- 12 से 15 गांवों के लिए तीन इमरजेंसी शेल्टरों का निर्माण किया जा रहा
- 163 ग्रामीण, जिनमें राज मिस्री भी शामिल हैं, को प्रशिक्षण दिया गया