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Disaster Management

श्रीजन पशुपालनः बढ़ गई पशुपालन से आय

श्रीजन परियोजना की शुरुआत में भी आपदा प्रभावित इलाकों में पशुपालन किया जा रहा था, लेकिन उन्नत प्रजाति के पशु उपलब्ध नहीं थे। घरों से दूर जंगलों से चारा लाया जा रहा था। चारे की कमी बनी थी। इन वजहों से कई परिवार पशुपालन नहीं करना चाह रहे थे। श्रीजन ने उन परिवारों पर फोकस किया, जो आर्थिक रूप से कमजोर थे और उनको आजीविका के लिए संसाधन चाहिए थे। आठ गांवों में दस परिवारों को तीन साल के बीमा सहित उन्नत नस्ल की गायें उपलब्ध कराई गईं। जरूरी संसाधन जैसे- चारे के लिए घरों के पास ही नैपियर ग्रासएजोला पिट, वर्मी कंपोस्ट पिट, वर्मी वॉश दिए गए। गोशालाएं बनाकर दी गईं। सभी तरह के सहयोग से पशुपालन कई घरों की आमदनी का अच्छा स्रोत बन गया है। इसका परिणाम यह रहा कि तीन साल में पशुपालन से ग्रामीणों की आय लगभग तीन गुना हो गई।

 ऊखीमठ ब्लाक के बणसु गांव की आपदा प्रभावित प्रतिमा के पति सुनील लाल और ससुर का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। घर में प्रतिमा की सास और एक बेटा भी हैं। आर्थिक स्थिति काफी खराब होने से परिवार परेशानी में था। ग्राम प्रधान और समूह की सहमति पर श्रीजन ने प्रतिमा देवी के परिवार को उन्नत प्रजाति की गाय दी। प्रतिमा ने खूब मेहनत की और उनके परिवार को काफी मदद मिल रही है। वर्तमान में 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बाजार में गाय का दूध बेचकर परिवार को आर्थिक सहयोग कर रही हैं।  श्रीजन पशुपालन : मुझे निराशा से बाहर निकाला श्रीजन ने 

55 साल के शिवराज सिंह ने केदारनाथ आपदा में 23 साल के युवा बेटे और 26 साल के दामाद को खो दिया। शिवराज जखोली ब्लाक के पाट्यौ गांव में रहते हैं। बताते हैं कि  आपदा से पहले उनका दामाद और बेटा ट्रक से सामान लेकर गौरीकुंड पहुंचे थे। बेटे और दामाद की मृत्यु से शिवराज को गहरा सदमा लगा। अपने परिवार के साथ ही विवाहित बेटी और उसके दो बच्चों की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। उन्होंने श्रीजन से परिवार की परवरिश के लिए गाय या भैंस दिलाने की मांग की। श्रीजन परियोजना ने उनको उन्नत नस्ल की गाय उपलब्ध कराई। वर्तमान में शिवराज सिंह 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दूध बेच रहे हैं। पूरे माह में पांच हजार रुपये तक की बचत कर रहे हैं। उनको काफी सहारा मिला है।  श्रीजन आवासःअब भूकंप से भी खतरा नहीं

 आपदा में जखोली ब्लाक स्थित बुडोली गांव की राजी देवी के पति की मृत्यु हो गई। दो बेटों और एक बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी राजी देवी पर आ गई। घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। राजी देवी को समझ में नहीं आ रहा था कि परिवार का गुजारा कैसे होगा। श्रीजन को खुली बैठक में प्रस्ताव मिला कि उनको आजीविका के लिए उन्नत किस्म की गाय या भैंस दी जाए। राजी देवी को गाय मिलने पर बड़ी खुशी हुई। गाय का दूध बिक्री करके बच्चों की पढ़ाई और अन्य खर्चों को पूरा कर रही हैं।  श्रीजन एसएचजीः आपदा के अंधेरे में रोशनी बन गए ये समूह

 ऊखीमठ ब्लाक के खुमेरा निवासी प्रेम सिंह केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े खच्चर चलाते थे। पिता कृत सिंह सहित पांच सदस्यों का परिवार उन पर ही निर्भर है। 2013 की आपदा में प्रेम सिंह का रोजगार खत्म हो गया। थोड़ी सी खेती से परिवार के खर्चे नहीं निकल पाते थे। मजदूरी के सहारे आजीविका चला रहे प्रेम सिंह को खुली बैठक में गाय देने का प्रस्ताव पारित किया गया। प्रेम सिंह ने गांव में डेयरी लगाई है और महीने में 2000 रुपये तक की आमदनी हो जाती है। यह रकम बच्चों की शिक्षा और परिवार की अन्य जरूरतों पर खर्च कर रहे हैं।  

अगत्स्यमुनि ब्लाक के चंद्रापुरी स्थित बुटोलगांव के नरेंद्र सिंह के परिवार में मां, पत्नी और दो बच्चे हैं। आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। आपदा में काफी खेती बह गई। उनको एक कंपनी में मजदूरी करनी पड़ी। नरेंद्र की पत्नी दुर्गा भवानी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी है। यह स्वयं सहायता समूह भी मानवभारती संस्था ने बनाया है। बड़ी मुश्किलों से नरेंद्र परिवार के खर्चे पूरे कर पा रहे थे। गांव की खुली बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार नरेंद्र के परिवार को उन्नत नस्ल की गाय उपलब्ध कराई गई। वर्तमान में 35 रुपये प्रति किलो की दर से दूध बिक्री करके नरेंद्र सिंह हर माह करीब दो से ढाई हजार रुपये की आमदनी कर रहे हैं।

 ऊखीमठ ब्लाक के जाखधार स्थित ग्राम त्यूड़ी की सुनीता देवी के पति राकेश सेमवाल श्रीकेदारनाथ यात्रा में घोड़े खच्चर चलाते हैं। परिवार इसी पर निर्भर है। उनके परिवार में दो बेटे और सास सहित पांच लोग हैं। आपदा के बाद से केदारनाथ मार्ग पर घोड़े खच्चरों का काम काफी कम हो गया। घर के खर्चे निकालने मुश्किल हो गए। आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। सुनीता देवी पशुपालन कर रही थीं। ग्राम पंचायत की खुली बैठक में उनको गाय या भैंस देने का प्रस्ताव पास किया गया। सुनीता को गाय दी गई।  श्रीजन काउंसलिंगः जेहन में दबा दर्द बाहर निकला

आपदा में उनके पति की मृत्यु हो गई। खच्चर भी मारे गए। कमाने के साधन खत्म हो गए थे। अब क्या होगा साब! गाय मिली, जिससे पांच किलो तक दूध मिल जाता था। बाजार में 23 रुपये किलो दूध बेचा। महीने में तीन हजार रुपये तक मिल जाते थे, जिससे घर का गुजारा चल जाता था। अब तो दूध के दाम बढ़ गए हैं। पशु और खेती से ही घर चलता है। -सर्वेश्वरी, त्यूड़ी गांव

 दुग्ध उत्पादन से बढ़ी आय

  • 4,032 रुपये लगभग रोजाना का दूध उत्पादन था आठ गांवों में 2014 में (दूध के दाम औसतन 21 रुपये)
  • 11,560 रुपये से ज्यादा का दूध उत्पादन होता है आठ गांवों में वर्तमान में (दूध के दाम औसतन 31 रुपये प्रति किलो)
  • 349 दुधारू पशु थे श्रीजन परियोजना की शुरुआत के समय
  • 394 दुधारू पशु हो गए हैं अब आठ गांवों में
  • 2.8 गुना वृद्धि हुई दूध उत्पादन से आमदनी में