
श्रीजन परियोजनाः जैविक खेती से बदल रहे हालात
आपदा से पहले बुटोल गांव में 37 परिवारों का अधिकतर खर्चा सब्जी उत्पादन पर चल रहा था। हालात बिगड़ गए और खेती की काफी भूमि बाढ़ में बह गई। चंद्रापुरी का बाजार भी जलप्रलय में खत्म सा हो गया था। अलकनंदा से पानी लिफ्ट करने वाले हाइड्रम भी बह चुके थे। रोजगार नहीं होने पर लोग निराश हो गए और समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। बुटोल के लोगों की मेहनत और जज्बे को सलाम करना होगा, यहां चार साल में धीरे-धीरे फिर नये सिरे से सब्जी उत्पादन पर काम होने लगा और आज फिर से बसा बाजार भी गुलजार दिखता है। श्रीजन ने किसानों को आर्गेनिक खेती से जोड़ते हुए वर्मी कम्पोस्ट पिट, वर्मी वॉश और एजोला पिट बनाने की ट्रेनिंग दी। उनको बीज उपलब्ध कराए। रुद्रप्रयाग में श्रीजन परियोजना का पहला कदम
पुनर्वास में सबसे बड़ी चुनौती आजीविका उपलब्ध कराना अत्यंत जरूरी था, क्योंकि किसी भी ग्रामीण क्षेत्र की आजीविका का प्राथमिक स्रोत कृषि होता है। पहाड़ की कृषि में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है, इसलिए उनको कृषि के जरिये आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाना था। श्रीजन परियोजना ने कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से किसानों को कृषि की तकनीकी सहित अन्य पहलुओं पर मार्गदर्शन के लिए ट्रेनिंग दी। खासकर जैविक खेती के तरीकों और जरूरी संसाधनों पर फोकस किया गया। सब्जी उत्पादन के लिए उन्नत किस्म के बीज बांटे गए। श्रीजन परियोजना : आपदा के अंधेरे से समृद्धि के उजाले की ओर…
अब आपदा प्रभावित इलाकों में जैविक खेती और सब्जी उत्पादन तरक्की की नई इबारत गढ़ रहे हैं। खेती में स्थानीय संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है और यह रसायनों के प्रयोग पर रोक लगाता है। यह बंजर होती खेती को फिर से उपजाऊ बनाने की सबसे अहम कवायद है। सबसे बड़ी बात इसमें लागत भी काफी कम आ रही है और फसल की क्वालिटी भी खूब है। वहीं सात फार्मर इंटरेस्ट ग्रुप (एफआईजी) वर्तमान में सेविंग और लोनिंग पर काम करने के साथ ही आर्गेनिक खेती को बढ़ाने में जुटे हैं।
गेल इंडिया के सहयोग से बुटोल के उन्नतशील किसान महिपाल सिंह और अन्य लोगों ने आर्गेनिक सब्जी उत्पादन पर फोकस किया और आज पहाड़ में पैदा होने वाली सभी सब्जियां उनके पॉली हाउस में मिल जाएंगी। पॉलीहाउस से ही सब्जियां बिक जाती हैं। महिपाल सिंह कहते हैं कि आर्गेनिक उत्पादन की ताजगी ज्यादा दिनों तक बनी रहती है। शुरुआत में उत्पादन भले ही कम हो, लेकिन गुणवत्ता कहीं ज्यादा होती है। गुणवत्ता की वजह से ही आर्गेनिक सब्जियां और अन्य उत्पाद थोड़ा महंगे बिकते हैं।
उनके पास वर्मी कंपोस्ट है, जहां गोबर, पत्तियों और अन्य बायो उत्पादों के अवशेषों से खाद तैयार होती है। बताते हैं कि हर माह कम से कम छह से सात हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। चंद्रापुरी इलाके में रहने वाले कर्मचारी, शिक्षक और अन्य लोग बुटोलगांव सब्जियां खरीदने पहुंचते हैं। बेमौसमी सब्जियां भी उगाते हैं, जिसकी अच्छी कीमत मिलती है। कुल मिलाकर 51 नाली भूमि पर श्रीजन के सहयोग से 13 किसान आर्गेनिक सब्जी उत्पादन कर रहे हैं। अदरक, हल्दी, पहाड़ के परंपरागत अनाजों की जैविक खेती भी खूब की जा रही है।
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इसी तरह त्यूड़ी गांव में वर्मीवॉश और वर्मी कंपोस्ट की ट्रेनिंग दी गई। 19 महिलाओं ने आर्गेनिक खेती के तरीकों के बारे में जाना। ग्राम प्रधान बीना देवी की अध्यक्षता में प्रशिक्षक एचएस रावत ने प्रशिक्षण दिया। रावत बताते हैं कि ट्रेनिंग का उद्देश्य लोगों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करना है। क्योंकि रसायनों के इस्तेमाल से जमीन की उवर्रक शक्ति खत्म हो रही है। खेत बंजर हो रहे हैं। होता यह है कि रसायनों के इस्तेमाल से खेतों में रेंगने वाले केंचुए जमीन के अंदर चले जाते हैं। अगर हम खेतों में जैविक खाद का प्रयोग करेंगे तो किसानों के मित्र कहलाए जाने वाले केचुएं बाहर आकर मिट्टी को फसल के अनुकूल बना देंगे। यही जैविक खेती है।
ट्रेनर रावत ने बताया कि रसायनिक खाद से होने वाली खेती पर्यावरण के साथ संतुलन भी नहीं बना पा रही है। खेती को रसायन से जैविक में बदलने में समय लगेगा और शुरुआत में फसल उत्पादन भी कम होगा, क्योंकि पहले यह खेतों में इस्तेमाल किए जा चुके रसायनों के प्रभाव को खत्म करती है। जैविक खाद से फसल गुणवत्ता वाली होगी और हम अपने खेतों को बंजर होने से बचा सकेंगे। उन्होंने जैविक खाद बनाने के तरीकों पर भी चर्चा की।
इसी तरह श्रीजन ने दस गांवों में 187 किसानों, जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक है, को आर्गेनिक खेती से जोड़ते हुए वर्मी कम्पोस्ट पिट, वर्मी वॉश और एजोला पिट उपलब्ध कराए। इसके साथ ही गांवों में चली अन्य ट्रेनिंग में प्रशिक्षक नवीन सिंह बर्फाल ने सब्जी,फल- फूल उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों की विस्तार से जानकारी दी।
आर्गेनिक बागवानी की ट्रेनिंग लेने वालीं खुमेरा गांव की प्रभा देवी बताती हैं कि उनके खेत में आड़ू, माल्टा, नींबू तथा सब्जियों का उत्पादन होता है। रसायनों के इस्तेमाल से उत्पादन तो ज्यादा हो सकता है, लेकिन फल और सब्जियों की गुणवत्ता खराब रहती है। इसलिए आर्गेनिक खेती ज्यादा बेहतर है। उनका कहना है कि पहले फल जल्दी खराब हो जाते थे। पेड़ से तोड़ने के तीसरे दिन ही फ्रेशनेस गायब होने लगती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जैविक खाद से अच्छी क्वालिटी के फल मिल रहे हैं। कंपोस्ट पिट से निकले पानी को पाइप से टैंक में इकट्ठा किया जाता है, जिसे वॉश कहते हैं। इसको गोमूत्र में मिलाकर फसलों पर छिड़का जाए तो कीटनाशक का काम करता है। एजोला से बनी खाद मिट्टी को पर्याप्त नाइट्रोजन देती है। श्रीजन पशुपालनः बढ़ गई पशुपालन से आय
बणसू गांव की अल्का देवी कहती हैं कि पहले गोबर को सीधे खेतों में डाल देते थे, लेकिन अब कंपोस्ट पिट में गोबर और पत्तियां इकट्ठा करते हैं, जिसमें मौजूद केचुएं इसे हल्की और बारीक कणों वाली खाद में बदल देते हैं। मैंने आलू और गेहूं की फसल में दो बार इस खाद को इस्तेमाल किया। फसल अच्छी हुई। अब हम हमेशा इसको इस्तेमाल करेंगे। खुमेरा की अनिता भी आर्गेनिक खेती कर रही हैं। बताती हैं कि यह आर्गेनिक खेती की गुणवत्ता का असर है कि फल खेत से ही बिक रहे हैं। माल्टा और बुरांश का जूस और स्कवैश बनाकर पैकिंग की जा रही है। इन उत्पादों की काफी डिमांड है। कुल मिलाकर हर माह चार से पांच हजार रुपये आमदनी हो जाती है। हमने जूस, स्कवैश बनाने की भी ट्रेनिंग ली है। हमारे गांव में माल्टा काफी होता है, पहले यह यूं ही बर्वाद हो जाता था। बच्चे इसे गेंद बनाकर खेलते थे। अब यह आमदनी का स्रोत बना है। ए और बी ग्रेड का माल्टा बिक जाता है और सी ग्रेड का छोटा माल्टा जूस बनाने के काम आता है। श्रीजन पशुपालन : मुझे निराशा से बाहर निकाला श्रीजन ने
सब्जी उत्पादन से हर माह चार लाख की बचत
आपदा प्रभावित दस गांवों के लोग रोजाना बाजार से सब्जी खरीद रहे थे। ऐसा नहीं है कि वो सब्जी नहीं उगा रहे थे, लेकिन उत्पादन लगभग न के बराबर ही था। इसका प्रमुख कारण बाढ़ में अधिकांश खेती बह जाना रहा और लंबे समय से रसायनों के इस्तेमाल से सब्जी उत्पादन घटने लगा था। कई परिवार तो सब्जी उगाना समय गंवाना मान रहे थे। गेल इंडिया तो हर परिवार को किसी न किसी रूप में आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाना चाहता था।
श्रीजन परियोजना ने हर घर को जैविक सब्जी उगाने के लिए प्रेरित किया और उन्नत खेती की ट्रेनिंग दी गई। अच्छी गुणवत्ता के बीज निशुल्क बांटे गए। खाद के लिए बायो कंपोस्ट और वर्मीवाश उपलब्ध कराए गए। इसका सुखद परिणाम यह रहा कि साढ़े तीन साल में हर परिवार अपने इस्तेमाल के लिए सब्जी उगा रहा है। पहले एक परिवार को रोजाना औसतन 20 रुपये की सब्जी खरीदनी पड़ रही थी, अब यह पैसा बचत का है, वो भी सीधे तौर पर कम से कम 600 रुपये हर माह की बचत। वहीं अब अधिकतर परिवार सब्जी बाजार से नहीं लाते, बल्कि अपने खेतों में उगी सब्जी को बाजार भिजवाकर आय अर्जित करते हैं।
सब्जी खरीद का आंकड़ा (रुपये लगभग में)
- 04 लाख रुपये की बचत कर रहे दस गांव एक माह में ( सभी खर्च निकालकर)
- 05 लाख रुपये की सब्जी खरीद रहे थे दस गांवों के लोग एक माह में
- 16 हजार रुपये से ज्यादा की सब्जी खरीदी जा रही थी एक दिन में