
श्रीजन परियोजना : आपदा के अंधेरे से समृद्धि के उजाले की ओर…
उत्तराखंड की केदारघाटी में जून, 2013 की आपदा से जूझ रहे रुद्रप्रयाग जिले के तीन ब्लाकों अगस्त्यमुनि, जखोली और ऊखीमठ के गांवों में स्थाई पुनर्वास और आजीविका प्रबंधन के लिए गेल इंडिया की पहल पर मानवभारती संस्था ने श्रीजन परियोजना की शुरुआत की। वर्तमान में दस गांवों में संचालित हो रही श्रीजन परियोजना अंतिम पड़ाव पर है। श्रीजन परियोजना के आगाज से अब तक के सफर को कुछ इस तरह श्रृंख्लाबद्ध किया गया है-
” केदारघाटी पर छाए काले बादल काल बनकर टूटेंगे, इसका जरा भी अहसास नहीं था। फिर कभी नहीं मिलेंगे, ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था। जलप्रलय में सब कुछ खत्म हो गया। चारों ओर अजीब सा सन्नाटा पसरा था, बीच बीच में कोई चीख बता रही थी कि किसी घर में मातम मन रहा है। गांवों के पास होकर बहने वाली नदियों और गदेरों का शोर दहशत फैला रहा था। जीवनदायिनी नदियों में लाशें बह रही थीं। सड़कें गायब हो गईं और कहीं से भी कोई मदद की उम्मीद नहीं थी। कच्चे-पक्के मकान, खेतों और पशुओं तक को बहा ले गई बाढ़। पहाड़ फाड़कर निकली जलधाराओं ने गांव के गांव मलबे में दबा दिए। मलबे में दबे वो अपने लोग, जो कभी जिंदगीभर साथ निभाने का वादा करते थे, पलभर में छोड़कर चले गए। उनको तलाशने का सिलसिला कई दिन इस उम्मीद के सहारे चला कि शायद कोई जीवित मिल जाए, लेकिन दिन बीतते रहे और निराशा हावी होने लगी। मैं ही नहीं मेरे जैसे कितने लोगों ने अपनों को खो दिया और कुछ के अपने तो आज चार साल बाद भी लापता ही हैं। कइयों की जिंदगी तो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई और कई के सामने जीने का कोई मकसद ही नहीं रह गया। उत्तराखंड में आपदा का यह अंधेरा बड़ा भयावह था….।
जिंदगी रूठ गई और आपदा के अंधकार में आशा की कोई लौ अब जलती नहीं दिख रही थी। रोजगार भी छीन गया था और उसको फिर से धरातल पर लाने का कोई रास्ता भी सामने नहीं था। आगे क्या होगा… यह सवाल अवसाद की ओर ले गया। अपने सामने परिवार को खो देने का जख्म जीवनभर कष्ट देता रहेगा, लेकिन क्या जिंदगी यहीं खत्म हो जाती है, शायद नहीं। जिंदगी अभी बाकी है, इसकी चुनौतियों से लड़ना है, पर हौसले और पहाड़ जैसे इरादों को भी किसी सहारे की जरूरत होती है… इस सहयोग की आस हमको भी थी। क्योंकि फिर से शुरू करना था सब कुछ, जलप्रलय ने कुछ भी नहीं छोड़ा था। आपदा के बाद नई उम्मीदों का सृजन और जीने के लिए नई राह तलाशने की हिम्मत जुटाना आसान नहीं था, यह ठीक किसी पहाड़ को लांघने जैसा था।
गेल इंडिया की मानवभारती संस्था से संचालित श्रीजन परियोजना सहारा बनी और फिर कहीं ठिठकी हुई जिंदगी को राह दिखने लगी। पहाड़ सी दिक्कतों पर जीत के लिए साहस बंधने लगा। आपदा से पैदा हुईं बाधाएं धीरे-धीरे, पर स्थाई तौर पर दूर होने लगीं। एक बार फिर आगे बढ़ती जिंदगी का सुरमय राग सुनाई देने लगा। यह हर घर से शुरू हुई पहल का नतीजा है। इस अलख को जगाने का श्रेय गेल इंडिया और मानवभारती संस्था के सहयोग से चली श्रीजन परियोजना की एक सतत प्रक्रिया की वजह से मेरा गांव अब तरक्की के रास्ते पर है। गेल इंडिया से कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत वित्तीय सहयोग के करार के बाद मानवभारती सोसाइटी ने उत्तराखंड के आपदा प्रभावित रुद्रप्रयाग क्षेत्र में लंबे समय तक पुनर्वास कार्य की जिम्मेदारी उठाई। मानवभारती संस्था की श्रीजन परियोजना ने जनवरी 2014 से रुद्रप्रयाग के आपदा प्रभावित गांवों में पुनर्वास कार्यों की शुरुआत की।
मानवभारती संस्था ने आपदा प्रभावितों के क्षमता विकास, काउंसलिंग, डिजास्टर प्रूफ निर्माण तकनीकी और आजीविका संसाधन विकास के लिए कार्य शुरू किए। लगातार साढ़े तीन वर्ष से भी ज्यादा समय तक आपदा प्रभावित समुदायों के पुनर्वास, मनोवैज्ञानिक सलाह और सहयोग, डिजास्टर प्रुफ टेक्नोलॉजी को प्रचारित करके इसका इस्तेमाल कराने, आजीविका के स्थाई संसाधनों को विकसित करने, सूचना, शिक्षा और संवाद के जरिये लोगों को जागरूक करने, आपदा के खतरों को कम करने संबंधी अन्य सेवाओं पर बिना रूके काम किया। स्थाई पुनर्वास पूरी तरह जनसहभागिता पर आधारित रहा। इसमें स्वयं सहायता समूह प्रभावी रूप से कार्य करते हैं।
डिजास्टर मैनेजमेंट में मुख्य रूप से चार तत्वों आपदा के खतरों को कम करने के तरीकों, आपदा से निपटने की तैयारियों, रिस्पांस और रिकवरी पर फोकस किया जाता है। उत्तराखंड में 2013 की बाढ़ से जान माल के भारी नुकसान को देखते हुए यह माना गया कि केवल इन चार तत्वों पर ही काम करके सफलता हासिल नहीं की जा सकती। इनमें एक और पांचवें तत्व- जागरूकता और शिक्षा को भी अनिवार्य रूप से शामिल करना होगा। शिक्षा और जागरूकता की आपदा प्रबंधन में क्या खास भूमिका हो सकती है, इस पर चर्चा से पहले हम पहाड़ में हो रहे अनियोजित विकास और यहां से पलायन पर संक्षेप में बात करते हैं। पर्वतीय इलाकों में संसाधनों और सेवाओं का विकास पलायन को रोकने में खास भूमिका निभा सकता है। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल उठता है कि हम कैसा विकास चाहते हैं। क्या हमें पारिस्थितकीय तंत्र को असंतुलित करके आपदाएं लाने वाला विकास चाहिए या फिर प्रकृति के साथ तालमेल करके स्थाई तरक्की की बुनियाद रखनी है।
उत्तराखंड में भारी वर्षा और बाढ़ के साथ ही आपदा के प्रमुख कारणों में जल विद्युत परियोजनाओं का विस्तार, सड़कों का चौड़ीकरण और पर्यटन विकास भी शामिल है। हम मानते हैं कि विकास जरूरी है, लेकिन इसके लिए पहाड़ के पारिस्थितिकीय तंत्र से संतुलन बनाना होगा, तभी स्थाई तरक्की की ओर कदम बढ़ाया जा सकेगा। प्रकृति के साथ कदमताल करते विकास के लिए जागरूकता फैलानी होगी। यह पहल व्यक्तिगत, समाज और राज्य स्तर पर करने की जरूरत महसूस की गई। मानवभारती की श्रीजन परियोजना ने इसी रणनीति के तहत पुनर्वास कार्यों को विस्तार दिया। श्रीजन के काम पर्यावरण के अनुकूल विकास की अवधारणा पर आधारित हैं- चाहे जैविक खेती हो या फिर नदियों के वेग से चलने वाली घराट हो या फिर धुआंरहित ईंधन या फिर मिट्टी को बहने से रोकने वाली नैपियर ग्रास का उत्पादन हो। श्रीजन ने गांवों में जंगलों को बचाने, जल और मृदा संरक्षण, आपदा से बचाव की तकनीकी पर ट्रेनिंग ही उपलब्ध नहीं कराई, बल्कि इसमें खुद बढ़चढ़कर योगदान भी दिया। श्रीजन को पहाड़ के आपदा प्रभावितों के क्षमता विकास, समुदायों के सशक्तीकरण, सामाजिक और आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण, हरियाली को बढ़ाने और हरित ऊर्जा तकनीकी, पिछड़े क्षेत्रों और समाज के वंचित वर्गों के स्थाई विकास की नीति पर काम करना था।