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Disaster Management

एजोला से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में वृद्धि

एजोला उथले जल में तैरती हुई फर्न होती है, जो जल की सतह पर जमे शैवाल (काई) की तरह दिखती है। इसको सुपर प्लांट माना जाता है। सामान्यतः एजोला धान के खेतों में या उथले जल में होती है और बहुत तेजी से बढ़ती है। यह वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित करके बड़े स्तर पर प्रोटीन बनाती है। इसलिए पशुओं के चारे में इस्तेमाल करने से यह उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता और स्वास्थ्य को बेहतर करती है। इसमें प्रोटीन की अधिकता के साथ जरूरी एमिनो एसिड, विटामिन, पर्याप्त मिनरल्स मिलते हैं। इसमें 25 से 30 फीसदी प्रोटीन और 10-15 मिनरल्स मौजूद हैं। पशु इसको आसानी से पचा लेते है। रुद्रप्रयाग जिले के आपदा प्रभावित त्यूड़ी, बणसूं, खुमेरा, संसारी, बुटोल गांव में एजोला उत्पादन किया गया।  आपदा प्रभावित गांवों में 19 एजोला पिट बनाकर दिए गए हैं।

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बुटोलगांव के प्रगतिशील किसान महिपाल सिंह बताते हैं कि एजोला पिट बहुत कारगर है। गर्मियों में जब चारे की कमी हो जाती है, पशुओं को पौष्टिक एजोला खिलाया जाता है।इसमें भूसा मिलाया जाता है। एजोला को सुखाकर खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है।

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कैसे होता है उत्पादनः दस गुणा दस फीट और 8 इंच गहरे पिट पर प्लास्टिक शीट बिछा दी जाती है। मिट्टी की परत बिछाकर उसको पानी से भर दिया जाता है। इसमें गोबर और सल्फर फॉस्फेट के मिक्चर की कुछ मात्रा मिला दी जाती है। पानी की ऊपरी परत को पूरी तरह साफ करके उसमें करीब सौ ग्राम एजोला का बीज छिड़क दिया जाता है। दस से 15 दिन में एजोला से पिट भर जाता है।  बाद पूरा पिट पर पानी की सतह पर एजोला की चादर बिछ जाती है। इसी तरह कई बार एजोला की फसल हासिल की जा सकती है।