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Disaster Management

श्रीजन घराटः 490 परिवारों को मिली बड़ी राहत

 25 फरवरी 2016 को ऊखीमठ ब्लाक के त्यूड़ी गांव के पंचायत भवन में बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे हैं। यहां घराट पर ट्रेनिंग होनी है। कोटद्वार से घराट विशेषज्ञ महेश भट्ट ग्रामीणों को घराट के हर पुर्जे, इससे होने वाले फायदों व बचत पर जानकारी देने यहां आए हैं। आपदा में त्यूड़ी का परंपरागत घराट बहने से यहां के 108 परिवारों के सामने अनाज पिसाई का संकट खड़ा हो गया है। गेल इंडिया ने ग्रामीणों की मांग पर सहमति जताते हुए यहां घराट बनाने का फैसला किया है।

गेल इंडिया घराट बनवाने से पहले सभी ग्रामीणों को घराट की उपयोगिता और निर्माण की जानकारियों के लिए ट्रेनिंग दिला रहा है। यहां अनिल सिंह रावत को घराट चलाने का जिम्मा दिया गया है। ग्राम प्रधान बीना देवी की मौजूदगी में शुरू हुई ट्रेनिंग में विशेषज्ञ महेश भट्ट ने ग्रामीणों को घराट के हर पार्ट की जानकारी दी। बताया कि जहां पर 6-7 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है, वहां तीन से चार किलोवाट तक बिजली पैदा होती है, जिससे 10-12 बल्ब जल सकते हैं।

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साथ ही अनाज पिसाई भी होती रहेगी। गांववालों को बिजली मिल सकती है और पिसाई का रेट बाजार से लगभग आधा होगा।  इसी तरह अगस्त्यमुनि के बष्टी, गिंवाला, भीरीं, ऊखीमठ के त्यूड़ी व खुमेरा में घराट बनाए गए। लगभग ढाई साल से पांच गांवों के 490 परिवार इन घराट के भरोसे हैं और अपना समय, श्रम और पैसा बचा रहे हैं। 

गीता देवी  बताती हैं कि महीने में दो बार अनाज पिसाई के लिए घराट पर भेजते हैं। पहले अनाज का भारी कट्टा लेकर चक्की तक जाने में काफी मेहनत करनी पड़ती थी। कई बार तो बाजार से ही आटा लाकर काम चला लिया, लेकिन जब घर में अनाज है तो बाजार का आटा क्यों खाया जाए। यह पैसे की बर्बादी था और बाजार के आटे में स्वाद भी घर के अनाज वाला नहीं था। कहती हैं कि श्रीजन वालों का धन्यवाद, जो उन्होंने गांव के पास ही घराट लगवा दी। अब कोई दिक्कत नहीं है। यहां पिसाई के लिए ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ता। अब भीरीं के लोगों को घर के पास ही घराट मिल गया। कुल मिलाकर आधा किमी. का भी आना जाना नहीं होता, जबकि पहले ब्यूगाड़ खुमेरा की चक्की तक आने जाने में दो किमी. चलना पड़ रहा था।

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अगस्त्यमुनि ब्लाक के बष्टी गांव की ही बात करें तो यहां के 107 परिवारों को अनाज पिसवाने के लिए लगभग ढाई किमी. दूर बांसवाड़ा जाना पड़ रहा था, यानि पांच किलोमीटर आना जाना। घराट अब मात्र आधा किमी. की दूरी पर है और यहां मात्र एक घंटे में अनाज पिस जाता है। पहले बांसवाड़ा में भीरीं गांव का अनाज भी आता था, इसलिए कभी कभार पिसाई के लिए दो घंटे तक इंतजार करना पड़ जाता था।

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नहरों पर बने ये घराट बिजली से चलने वाली आटा चक्की से कहीं ज्यादा बेहतर और किफायती हैं। बिजली वाली चक्कियों पर प्रतिकिलो अनाज पिसाई का रेट तीन रुपये हैं, जबकि ग्रामीणों को घराट पर मात्र दो रुपये प्रति किलो पिसाई देनी पड़ रही है। क्योंकि यहां बिजली खर्च नहीं होती बल्कि कुछ घरों के लिए पैदा जरूर की जा सकती है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी घराट सही हैं। साथ ही एक गांव में एक व्यक्ति को घराट के जरिये रोजगार मिल गया। घरों के पास ही घराट बनने से आपदा प्रभावितों के समय और श्रम की काफी वचत हुई है। आकलन के अनुसार एक माह में यह फायदा हुआ।

 प्रति परिवार को यह लाभ हुआ (490 परिवार के अनुसार)

  • 3.8 किमी. कम दूरी चलनी पड़ी एक माह में
  • 2.6 घंटे बचे एक परिवार के अनाज पिसवाने में

 घराट से पहले

  • 2877 किलोमीटर चलना पड़ रहा था दूसरे गांवों की चक्कियों तक जाने में
  • 1786 घंटे समय लग रहा था चक्कियों पर आटा पिसाने में ही 

 घराट बनने के बाद

  • 1012 किलोमीटर ही चलना पड़ रहा घराट तक जाने में
  • 468.6 घंटे लग रहे पांचों गांवों के परिवारों को अनाज पिसाने में

 पांच गांवों के श्रम और समय की बचत

  • 1865 किमी. कम दूरी चलनी पड़ रही अनाज पिसवाने में
  • 1317.4 घंटे समय बचा आपदा प्रभावित परिवारों का