
श्रीजन कौशल विकासः दोगुने से ज्यादा हो गए हुनरमंद
2013 की आपदा में पति की मृत्यु हो गई। मुझे अवसाद ने घेर लिया था। मैं समझ ही नहीं पा रही थी क्या करूं। हमेशा यह सवाल झकझोरता रहता कि अब मेरे बच्चों का क्या होगा। श्रीजन की टीम हमारे गांव पहुंची और लोगों के साथ बैठकें की। उन्होंने हमसे कहा कि वो हमें आत्मनिर्भर बनाएंगे। उन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया कि वो परिवार की देखभाल करने में हमारी मदद करेंगे। उनकी प्रेरणा और मदद से यह विश्वास बढ़ता गया कि हम खुद अपने बच्चों की देखभाल कर सकते हैं। श्रीजन ने कई ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाकर हमें खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए तैयार किया। हैंडीक्राफ्ट का सामान बनाकर श्रीजन के सहयोग से बाजार में बेचती हूं। मैं बुनाई करती हूं, जिससे मेरा परिवार चलता है। मुझमें आत्मविश्वास बढ़ा है।
त्यूड़ी गांव की कविता देवी की यह बात गेल इंडिया की उस पहल की ओर इशारा करती है, जो चार साल पहले आपदा प्रभावित गांवों में शुरू हुई थी। इस शुरुआत का मकसद हर बार आपदा से डगमगाने वाली पहाड़ की जिंदगी को खुशहाली और समृद्धि की मजबूत नींव पर स्थापित करना था। आपदा के सदमे से लोगों को बाहर निकालना, कौशल विकास से आय में बढ़ोतरी करना, दैनिक कार्यों में लगने वाले अधिक श्रम और समय को कम करने के उपाय तलाशना, पहाड़ के जीवन को आसान बनाने में मदद करना, घर के भीतर और बाहर सुरक्षा उपलब्ध कराना, बच्चों को शिक्षा और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना, महिलाओं को सामाजिक व आर्थिक रूप से मजबूत बनाना, हर व्यक्ति को आपदा से निपटने के लिए जागरूक बनाना, आजीविका के संसाधनों और पर्यावरण सुरक्षा के बीच तालमेल बनाना और तरक्की के लिए कुछ नया करने के लिए प्रेरित करना, जैसे कई लक्ष्यों को लेकर गेल इंडिया ने मानवभारती के साथ कदम आगे बढ़ाए।
आज गेल इंडिया का यह लक्ष्य सफल होकर पहाड़ के इन गांवों की जीवनशैली और आर्थिक तरक्की में साफ तौर पर दिखाई देता है। श्रीजन परियोजना में कौशल विकास की ट्रेनिंग पर फोकस किया गया। महिलाओं ने इनमें काफी उत्साह से भागीदारी की। महिलाओं की आय में हर माह कुछ सौ रुपये की बढोतरी दर्ज हुई है।
गेल इंडिया ने आपदा के बाद घर-घर जाकर बेस लाइन सर्वे कराया था। उस समय हर घर में औसतन एक ही व्यक्ति ऐसा मिला, जो आमदनी के लिए कोई न कोई काम जानता था। महिलाएं घर के कामकाज, पशुपालन और कृषि में ही ज्यादा समय बिता रही थीं। कृषि और पशुपालन भी परंपरागत तरीके से हो रहे थे, जिसमें समय और श्रम ज्यादा लग रहे थे। गांवों में जाकर स्थानीय संसाधनों पर आधारित उत्पाद बनाने, मार्केटिंग करने की ट्रेनिंग दी गई। हैंडीक्राफ्ट से लेकर 28 तरह के कौशल विकास की ट्रेनिंग के बाद महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ीं। अब वो पशुपालन और खेती के उन्नत तरीके भी जान गईं हैं और सिलाई बुनाई से लेकर लकड़ी और पेपर के छोटे उत्पाद बनाना भी सीख गई हैं। कोई चूड़ी व शीशा स्टैंड बना रहा है तो कोई जूस, स्कवैश व अचार। आपदारोधी भवन बनाने का कौशल विकास भी श्रीजन की ट्रेनिंग में मिला।
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पहले हुए बेस लाइन सर्वे के अनुसार आपदा से पहले मात्र 826 यानि कुल आबादी के 20.19 लोग ही आमदनी के लिए कोई न कोई हुनर जानते थे। मानवभारती संस्था की ओर से 85 ट्रेनिंग प्रोग्राम के बाद दस गांवों में 1860 (45.47 फीसदी) लोग अपने कौशल विकास के जरिये आजीविका चलाने में सक्षम हो गए हैं। स्वयं सहायता समूहों के बनाए उत्पादों को इन हाउस प्रदर्शनी, नेशनल और रीजनल और सीएसआर मेले में बिक्री के लिए रखा जाता है। सीआरटीसी पर उत्पादों का डिस्प्ले और बिक्री की जाती है। इसका पूरा रिकार्ड व्यवस्थित किया जाता है। स्वयं सहायता समूहों के इन उत्पादों की बिक्री के लिए ई कॉमर्स प्लेट फार्म तैयार किया जा रहा है।
भीरी गांव के दिनेश सेमवाल की खेती की काफी भूमि बाढ़ में बह गई। खेती उनके परिवार की आजीविका का प्रमुख स्रोत थी, जो भूमि बहने से खत्म हो गई। उनका परिवार बड़े संकट में फंस गया। श्रीजन परियोजना उनकी मदद के लिए आगे आई। गांव के अन्य युवाओं के साथ दिनेश को भी व्यावसायिक ट्रेनिंग दी गई, जिसमें पॉल्ट्री फार्म चलाने का प्रशिक्षण भी शामिल था। दिनेश ने इसको एक बड़े अवसर के रूप में स्वीकार किया और मुर्गी पालन के उन्नत तरीकों को सीखा। ट्रेनिंग पाने वाले दिनेश जैसे युवाओं को फारमर इन्टरेस्ट ग्रुप (एफआईजी) मदद करता है। दिनेश को ग्रुप से पॉल्ट्री फार्म चलाने के लिए लोन मिल गया। अब वह अपना पॉल्ट्री फार्म चला रहे हैं। दिनेश एफआईजी की गतिविधियों में शामिल होकर अपने गांव में अन्य लोगों ट्रेनिंग में सहयोग करते हैं। – दिल्ली विश्वविद्यालय की इंडीपेंडेंट एसेसमेंट रिपोर्ट का एक अंश
कम्युनिटी रिसोर्स एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (सीआरटीसी): श्रीजन ने सामुदायिक संसाधन और तकनीकी केंद्रों का निर्माण शुरू कराया। शुरुआत में अगस्त्यमुनि ब्लाक के लाउडी में किराये के भवन में सीआरटीसी चलाया गया। इनमें ट्रेनिंग, वर्कशॉप के साथ ही स्थानीय फसलों से उत्पाद बनाने, पैकिंग और सेल के कार्य भी चल रहे हैं। वर्तमान में ऊखीमठ के संसारी स्थित केंद्र में छह यूनिट बेकरी, टेलरिंग, डिजाइन, फूड प्रिजर्वेशन, कंप्यूटर ट्रेनिंग, डिस्प्ले यूनिट काम कर रही हैं। अगत्स्यमुनि के लाउडी में केंद्र का भवन तैयार हो गया है, जबकि जखोली के बांसवाड़ा में निर्माण चल रहा है। स्थानीय संसाधनों से जूस, स्क्वैश, मसाले, हैंडीक्राफ्ट उत्पाद तैयार करके डिस्प्ले भी इन केंद्रों पर किया जाता है।
मैंने यह बात कभी नहीं सोची थी कि एक दिन मैं अपने हाथों से बेहद खूबसूरत खिलौने, शीशा स्टैंड और कपड़ों पर डिजाइन बनाऊंगी। यह सब हैंडीक्राफ्ट की ट्रेनिंग में सीखने से हुआ है। हम अपने बनाए सामान को रिश्तेदारों या शादी विवाह में तोहफे के रूप में दे सकते हैं। मैंने ट्रेनिंग में जूस बनाना भी सीखा है। अब हम बाजार में बेचने लायक जूस बनाकर कुछ आमदनी करने में सक्षम हैं। – दिल्ली विश्वविद्यालय की इंडिपेंडेंट एसेसमेंट रिपोर्ट में लाभार्थियों की टिप्पणी
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उत्पादों की मार्केटिंगः आपदा प्रभावितों के बनाए उत्पादों को संडे मार्केट (हाट बाजार), गढ़वाल मंडल विकास निगम के आउट लेट्स, जनजातीय शॉप, देहरादून के विकासभवन, मेलों और प्रदर्शनियों के माध्यम से बिक्री किया जाता है। मानवभारती संस्था ने इन उत्पादों को श्रीजन ब्रांड के रूप में विकसित किया है।
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मधुमक्खी पालन प्रशिक्षणः ऊखीमठ ब्लाक के गुप्तकाशी स्थित एटीआई में त्यूड़ी, खुमेरा, बणसू और संसारी के ग्रामीणों को दो दिन की मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी गई। प्रशिक्षण लेने वाले 62 ग्रामीणों में 52 महिलाएं शामिल रहीं। प्रशिक्षक मोन पालन प्रबंधक राकेश धिर्वाण ने क्लास रूम और फील्ड में मधुमक्खी पालन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने मधुमक्खियों के व्यवहार के बारे में बताया। प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि मधुमक्खियों की एक पेटी से सालभर में छह से सात किलो शहद उत्पादन होता है। साल में तीन बार शहद हासिल कर सकते हैं। मधुमक्खियां भोजन की तलाश में डेढ़ किलोमीटर तक का सफर करते हैं। बारिश में भोजन के लिए मधुमक्खियों की पेटी में मडुवे की रोटी डालनी चाहिए। मधुमक्खी के बॉक्स ऊंचे स्थान पर नहीं रखने चाहिए और ये पशुओं वाले स्थान न हों। मधुमक्खी के बॉक्स के भीतर का तापमान 34 डिग्री सेल्सियस रहना चाहिए। मौन पालक प्रमिला देवी के अनुसार शहद की कीमत 300 से 400 रुपये प्रति किलो है।